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जुडवाँ बच्चे-दोहरी खुशियाँ

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नवली बाई मानपुर पंचायत के हण्ड़ी फला गांव की रहने वाली एक खेतीहर आदिवासी महिला श्रमिक है। इनकी उम्र 40 वर्ष है। लाली बाई के पति रामलाल प्रवासी श्रमिक है जो कि अहमदाबाद में मार्बल फर्श घिसाई का कार्य करते है। रामलाल जी लम्बे समय तक प्रवास पर रहते है और वार-त्योहार ही घर पर आते है। ऐसे में लाली बाई अपनी विधवा बीमार सास व अपने 6 बच्चों के साथ गांव में ही रहती है।

लाली बाई के जुड़वाँ बच्चे

लाली बाई को कार्यकर्ता की बात समझ में आ गई। उसने अपने तीन छोटे बच्चों को हण्डी फला में नव स्थापित फुलवारी पर नामांकित करवाया एवं दैनिक रूप से उन्हें फुलवारी पर भेजना शुरू किया। उसके ती बच्चे 4 साल से लगातार इस फुलवारी पर आ रहे है। लाली बाई उन्हें रोज सुबह स्नान करवा के साफ कपड़े पहना कर स्वयं सुबह 9 बजे फुलवारी पर छोडनें आती है व शाम 5 बजे वापस लेने आती है। वह बताती है कि मैं पहले काम की अधिकता की वजह से अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी लेकिन फुलवारी पर बच्चों को भेजने से उसे अब इसकी चिन्ता नहीं है। वह अपना काम आसानी से सम्पन्न कर पाती है उसे अब उनकी ज्यादा चिंता नहीं रहती है क्योंकि फुलवारी पर बहुत ही सावधानी के साथ बच्चों का खयाल रखा जाता है जिससे बच्चे पहले से ज्यादा तंदुरुस्त हुए है। लाली बाई आगे बताती है कि फुलवारी के अच्छे वातावरण का प्रभाव घर पर भी देखने को मिलता है। जैसे बच्चे साबुन से हाथ धोकर, खाना खाते है, धर पर कविताएं गुनगुनाते रहते है। उनकी बड़ी बेटी ने हाल ही में 6 बर्ष की उम्र में गांव के स्कूूल में एडमिशन लिया है। स्कूल के गुरूजी लाली बाई को बता रहे थे कि रेखा बहुत होशियार बच्ची है। कक्षा 1 की विध्यार्थी होने के बावजूद उसे बहुत सारी कविताएं याद है। इसे सम्पूर्ण अक्षर ज्ञान प्राप्त है और वह कक्षा 3 तक के सभी बच्चों को इसका दोहरान करवाती है। गुरूजी की यह बात सुनकर रॆखा की मॉँ गर्व से प्रफुल्लित हो उठती है। लाली बाई के दोनो जुड़वा बच्चे आज भी फुलवारी पर नामांकित है और वे नियमित रूप से यहाँ आतें है और वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से मजबूत बने है। रामलाल जी का कहना है कि “लम्बे समय के प्रवासी होने की वजह से पहले उन्हें बच्चों की बहुत चिन्ता रहती थी लेकिन जब से बच्चों ने फुलवारी पर जाना शुरू किया है उनकी चिन्ता समाप्त हो गई है और वे उससे बहुत खुश है।”

लाली बाई के पहले दो बच्चों (लड़का व लड़की) का जन्म घर पर ही हुआ। बाकी 4 बच्चों का जन्म पास ही की पंचायत भबराना के प्रथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर हुआ। उन्होने 4 वर्ष पूर्व अपने सबसे छोटे 2 बच्चों पायल व जमली को जुड़वा के रूप में जन्म दिया। जन्म के समय बच्चे बहुत कमजोर थे। पति का लम्बे समय तक प्रवास पर रहना, बीमार विधवा सास की देखभाल करना, उपर से 6 बच्चों का भरण-पोषण व देखभाल, खेती बाड़ी व पशुओं की देखभाल करना आदि का भार आ पड़ा। लाली बाई की स्थिति (जान-एक-काम-अनेक) वाली स्थिति में वह अपने दोनों जुड़वा बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाती थी। दोनो बच्चें अब तक 6 माह के हो गए थे लेकिन वे अत्यन्त दुबले पतले व कमजोर थे। तभी एक दिन हण्ड़ी फुलवारी की कार्यकर्ता खिमली बाई उसके घर पर आई और उसे बताया की बेसिक हेल्थ केयर सर्विसेज के तत्वाधान में हण्ड़ी फला में एक नई फुलवारी खुली है। जहाँँ 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों की सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक उचित देखभाल की जाती है। उन्हें पोषण के लिए 3 समय पौष्टिक आहार दिया जाता है। बच्चों को साफ-सफाई से रहना सिखाया जाता है व व्यहवारिक अच्छी आदतों का विकास किया जाता है। इसके अलावा शाला पूर्व की शिक्षा प्रदान की जाती है व खेल के माध्यम से शिक्षण गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। इससे बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत बनते है।

“जब गांव में फूलवारी नहीं थी तब बच्चों की देखभाल के लिए मैंने अपनी बड़ी बेटी को घर पर ही रखा जिससे वह कभी स्कूल नहीं जा पाई व अनपढ़ रह गई। फुलवारी के आने से मेरे बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से मज़बूत व सशक्त हुए है।” लाली बाई

By Rahul Shakdwepiya, Nutrition Programme

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